Practicing Success

Target Exam

CUET

Subject

Hindi

Chapter

Comprehension - (Narrative / Factual)

Question:

राधाकृष्णन ने विज्ञान का अनादर नहीं किया है, किन्तु, उनके जो दोष हैं, उनकी उन्होंने खुलकर भर्त्सना की है। मनुष्य का ध्यान ईश्वर, आत्मा और धर्म से हटाने में विज्ञान ने क्या अंशदान दिया है, इसे दिखलाते हुए वे कहते हैं कि बॉयलॉजी ( जीव-विज्ञान) का आध्यात्मिक प्रभाव यह हुआ है कि मनुष्य किसी भी कार्य में अपने को स्वाधीन नहीं मानता । उसका विश्वास है कि प्राकृतिक नियमों की अधीनता में जैसे अन्य जीव चलते हैं, मनुष्य भी उसी प्रकार चलता है। परिस्थितियाँ जैसी होंगी, मनुष्य के कार्य भी वैसे ही होते जाएँगे। अग्नि से जैसे और जीव तप्त होते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी तप्त होना पड़ेगा। वासनाएँ जैसे अन्य जीवों को अपना दास बना लेती हैं, मनुष्य के आगे भी उसके सिवा और कोई चारा नहीं है। इसी प्रकार, मनोविज्ञान ने मनुष्य को यह शिक्षा दी है कि सज्ञान अवस्था में भी वह स्वाधीन नहीं है। ऊपर ज्ञान और चेतना की जैसी भी रोशनी फैली हुई हो, मानव-मन में पशुता के आवेग ज्यों -के-त्यों वर्तमान हैं और मनुष्य के सारे कार्य इन्हीं आवेगों से परिचालित होते हैं। मनुष्य वातावरण का बन्दी है। उसमें कोई ऐसी शक्ति नहीं है, जिससे वह वातावरण का अवरोध या उससे अपनी रक्षा कर सके। विज्ञान की पृष्ठभूमि पर निर्मित अभिनव नीतिशास्त्र का भी कहना है कि सनातन या नित्य कहलाने योग्य कोई नैतिक मूल्य नहीं है। नैतिक मूल्य भी बादलों के समान क्षणभंगुर होते हैं और जो परिस्थितियाँ उनमें परिवर्तन लाती हैं, उन पर हमारा कोई अधिकार नहीं है तथा अभिनव तत्त्वज्ञान की मान्यता है कि जो वस्तु इन्द्रियों के द्वारा अथवा वैज्ञानिक साधनों के माध्यम से देखी या परखी नहीं जा सकती, वह सत्य नहीं मानी जानी चाहिए। जिस तत्त्वज्ञान में विचार आत्मा और परमात्मा को लेकर चलता है, उसे अभिनव तत्त्वज्ञानी अटकल या अनुमान कहते हैं। कविता और उपन्यास की भाँति धर्म और तत्त्वज्ञान भी विद्या के अंग अवश्य हैं, किन्तु वे केवल भावाभिव्यक्ति के माध्यम हैं, उनसे ज्ञान की तृषा शान्त नहीं होती । यही नहीं, विज्ञान यह भी कहता है कि एक दिन विश्व की गति समाप्त हो जाएगी और सब कुछ निर्जीव हो जाएगा। विज्ञान ने भौतिक सुखों में तो काफी वृद्धि की, किन्तु, मनुष्य के मन को उसने विषण्ण बना डाला। आत्मा, परमात्मा एवं सृष्टि के ध्येय और उद्देश्य को अविचारणीय बताकर उसने मनुष्य को, मानो, यह शिक्षा दी है कि तुम्हारा काम जनमना, बढ़ना, कमाना और खर्च करना, सन्तान उत्पादन करके वृद्ध होना और फिर इस विश्वास को लेकर मर जाना है।

'मनोविज्ञान' के अनुसार मनुष्य के विषय में कौन-सा कथन सत्य है?

Options:

मनुष्य वातावरण का बंदी है।

मनुष्य स्वयं का बंदी है।

मनुष्य, मनुष्य का बंदी है।

मनुष्य आवेगों से स्वतंत्र है।

Correct Answer:

मनुष्य वातावरण का बंदी है।

Explanation:

उत्तर: मनुष्य वातावरण का बंदी है।

व्याख्या:

गद्यांश के अनुसार, मनोविज्ञान के अनुसार, मनुष्य वातावरण का बंदी है। मनोविज्ञान के अनुसार, मानव-मन में पशुता के आवेग ज्यों-के-त्यों वर्तमान हैं और मनुष्य के सारे कार्य इन्हीं आवेगों से परिचालित होते हैं। मनुष्य वातावरण के प्रभाव से मुक्त नहीं है।

"मनोविज्ञान ने मनुष्य को यह शिक्षा दी है कि सज्ञान अवस्था में भी वह स्वाधीन नहीं है। ऊपर ज्ञान और चेतना की जैसी भी रोशनी फैली हुई हो, मानव-मन में पशुता के आवेग ज्यों -के-त्यों वर्तमान हैं और मनुष्य के सारे कार्य इन्हीं आवेगों से परिचालित होते हैं। मनुष्य वातावरण का बन्दी है। उसमें कोई ऐसी शक्ति नहीं है, जिससे वह वातावरण का अवरोध या उससे अपनी रक्षा कर सके। "