निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्न का उत्तर दीजिए:- कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ, और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुंधला दीप बुझाओ। किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों और तिमिर-घन छाकर, चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर, पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख यह तूफान भयंकर कब तक मुझसे लड़ पाएगा इंद्रराज का वज्र प्रखरतर मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है । मैंने बस चलना सीखा है। |
इस काव्यांश में किसकी महिमा बताई गई है? |
काँटों की रास्तों की अदम्य साहस और उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति की निष्ठुरता की |
अदम्य साहस और उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति की |
इस काव्यांश में मनुष्य के अदम्य साहस और उसकी दृढ़ इच्छाशक्ति की महिमा बताई गई है।मनुष्य अपने साहस , लगन और दृढ़ता की शक्ति के बल पर जीवन पथ पर निरंतर आगे ही बढ़ता जाता है। ऐसा करके वह जीवन में सफलता की नई ऊँचाई पर चढ़ता जाता है। |