नीचे दिए गए काव्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्न का सही विकल्प उत्तर रूप में छाँटिए:-
इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है। देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से सिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि से जाति भेद की, धर्म-वेश की
काले गोरे रंग - द्वेष की ज्वालाओं से जलते जग में इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।
नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारो नयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारो नये राग को नूतन स्वर दो भाषा को नूतन अक्षर दो युग की नयी मूर्ति - रचना में इतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है।
चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनाना अगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लाना सूरज, चाँद, चाँदनी, तारे सब हैं प्रतिपल साथ हमारे दो कुरूप को रूप सलोना इतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है।। |