निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढकर प्रश्न का उत्तर दीजिए:- अनन्त रूपों में प्रकृति हमारे सामने आती है-कहीं,मधुर,सुसज्जित या सुंदर रूप में, कहीं रूखे,बेडौल या कर्कश रूप में,कहीं भव्य,विशाल या विचित्र रूप में, उग्र,कुशल या भयंकर रूप में सच्चे कवि का ह्रदय उसके उन सब रूपों में लीनं होता है, क्योंकि उसके अनुराग का कारण अपना खास सुखभोग नहीं,बल्कि चिर साहचर्य द्वारा प्रतिष्ठित वासना है, जो केवल प्रफुल्ल प्रसून प्रसाद के सौरभ-संचार, मकरंद लोलुप मधुकर के गुंजार, कोकिल कूजित निकुंज और शीतल सुख स्पर्श समीर इत्यादि की ही चर्चा किया करते हैं,वे विषयी या भोग्लिप्सू हैं.इसी प्रकार जो केवल मुक्ताभास हिम-बिंदु-मंडित सरकताभ शब्दजाल, अत्यंत विशाल गिरी-शिखर से गिरते हुए जलप्रताप की गंभीर गति से उठी हुई सीकर निहारिका के बीच विविध वर्ण स्फुरण की विशालता ,भव्यता और विचित्रता में ही अपने ह्रदय के लिए सब कुछ पातें हैं, वे तमाशाबीन हैं, सच्चे भावुक या सहृदय कवि नहीं, प्रकृति के साधारण-असाधारण सब प्रकार के रूपों को रखने वाले वर्णन हमें वाल्मीकि , कालिदास इत्यादि संस्कृत के प्राचीन कवियों में मिलते है, पिछले खेवे के कवियों ने मुक्तक रचना में तो अधिकतर प्राकृतिक वस्तुओं का अलग-अलग उल्लेख मात्र उद्दीपन की दृष्टी से किया है. प्रबंध रचना में जो थोडा बहुत संश्लिष्ट चित्रण किया है,वह प्रकृति की विशेष रूप-विभूति को लेकर ही. |
सच्चे कवि का मन प्रकृति के समस्त रूपों के साथ क्यों रमता है? |
उन्होंने संस्कृति के प्राचीन कवियों द्वारा किये गए प्रकृति वर्णन पढ़े होते है प्रकृति के प्रति उनके अनुराग का कारण आत्मतुष्टि रहता है प्रकृति के चिर-साहचर्य द्वारा उनके ह्रदय में वासना प्रतिष्ठित हो जाती है उपर्युक्त में से कोई नहीं |
प्रकृति के चिर-साहचर्य द्वारा उनके ह्रदय में वासना प्रतिष्ठित हो जाती है |
सच्चे कवि का मन प्रकृति के समस्त रूपों के साथ इसलिए रमता है क्योंकि प्रकृति के चिर-साहचर्य द्वारा उनके ह्रदय में वासना प्रतिष्ठित हो जाती है |