निसदिन बरसत नयन हमारे |
हास्य भक्ति श्रृंगार करुण |
श्रृंगार |
इन पंक्तियों में श्रृंगार रस है। श्रृंगार रस का अर्थ है प्रेम, कामुकता, सौंदर्य। इन पंक्तियों में एक गोपी कृष्ण के वियोग में अपनी विरह वेदना व्यक्त कर रही है। वह कह रही है कि उसके नेत्र दिन-रात कृष्ण के लिए रोते रहते हैं। उसके शरीर में जैसे हमेशा वर्षा ऋतु रहती है। यहाँ गोपी के प्रेम और विरह की भावना का चित्रण किया गया है, जो श्रृंगार रस का स्थायी भाव है। अन्य विकल्प गलत हैं क्योंकि:
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