Practicing Success
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्न का उत्तर दीजिए:- कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ, और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुंधला दीप बुझाओ। किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों और तिमिर-घन छाकर, चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर, पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख यह तूफान भयंकर कब तक मुझसे लड़ पाएगा इंद्रराज का वज्र प्रखरतर मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है । मैंने बस चलना सीखा है। |
कविता का उपयुक्त शीर्षक क्या होगा? |
हमारी आवाज देश की घोषणा पशुबल को चुनौती स्वतंत्रता का गीत |
स्वतंत्रता का गीत |
कविता का उपयुक्त शीर्षक होगा स्वतंत्रता का गीत | |