Practicing Success
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए - "मैं जिस समाज की कल्पना करता हूं , उसमें गृहस्थ संन्यासी और संन्यासी गृहस्थ होंगे अर्थात संन्यास और गृहस्थ के बीच वह दूरी नहीं रहेगी जो परंपरा से चलती आ रही है ।संन्यासी उत्तर कोटि का मनुष्य होता है । क्योंकि उसमें संचय की वृति नहीं होती , लोभ और स्वार्थ नहीं होता। यही गुण गृहस्थ में भी होना चाहिए। संन्यासी भी वह वही श्रेष्ठ है जो समाज के लिए कुछ करें। ज्ञान और कर्म को भिन्न करोगे तो विषमता उत्पन्न होगी ही। 'मुख में कविता और करघे पर हाथ, यह आदर्श मुझे बहुत पसंद था इसी की शिक्षा में दूसरों को भी देता हूँ । श्रेष्ठ समाज वही है जिसके सदस्य ज्ञान और कर्म में से एक को श्रेष्ठ और दूसरे को अधम नहीं मानते। श्रेष्ठ समाज वह है जिसके सदस्य जी खोलकर श्रम करते हैं जरूरत है कि धन पर अधिकार जमाने की उनकी इच्छा नहीं होती। वे मानते हैं : "उधर समाता उन्न लै, तनही समता चीर। अधिकहि संग्रह ना करें, ताको नाम फकीर।" |
"मुख में कविता और करघे में हाथ" के आधार पर अनुमान लगाओ की इस गद्यांश में विचार किसके हैं? |
तुलसीदास के संत रैदास के जायसी के संत कबीर के |
संत कबीर के |
एस पंक्ति के आधार पर खा जा सकता है की इसमें संत कबीर के विचार व्यक्त हुए है | |