शांत होओ, धीमे बोलो ओ मन झुकाओ शीष. दिवस का अवसान, आ रही संध्या शांतिमयी तिमिर-तट पर असंख्य दीप जलाने वाली आरती- वेला आयी इस विश्वमंदिर प्रांगण में सुनो, अनंत में वह बाज रही निःशब्द गम्भीर मंद्र शंखध्वनि. इस शुभ क्षण शांत मन, संध्या- प्रकाश में संधि कर लो - अनंत के साथ. उपरोक्त काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:- |
'दिवस का अवसान' से अभिप्राय है |
संध्या रात्रि भोर दोपहर |
संध्या |
सही उत्तर विकल्प (1) है → संध्या |