निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर दिए गए प्रश्न का उत्तर दीजिए- चैत का महीना था। गोधूलि बेला थी । गोपाल, केदार और हम रामसहर के 'पंचमंदिल' के ऊँचे चौतरे पर बैठे हुए थे। रसे-रसे हवा डोलती थी। आम के मंजराने, नीम के फूलने और महुए के गदराने से दसों दिशाएँ गमगमाती थीं। पास ही की घनी अमराई में कोयल कुहुकती थी - हम लोग जितना ही चिढ़ाते थे, वह उतना ही उभड़ती जाती थी । दिन-भर खेतों में दाना चुगकर अपने बसेरे पर आई हुई चिड़िया अपने अँखफोड़ बच्चों को पंखों के आँचर में छिपाकर चहचहाती थी । बस्ती के इर्द-गिर्द बाँसों के झुरमुट में गौरैया और छोटी मैना चहक रही थी। खेत-खलिहानों में बूढ़े- जवान किसान अपनी मौज से चैत की तान अलापते थे। बड़े हुलास का समय था। ऐसा सुहाता था कि इतना भाता था कि - चैती बहार की मस्ती से मन नाच उठता था। पीपल, पाकड़ और नीम के लहलहे टूसे बड़े सुहावने देख पड़ते थे। |
खेत खलिहानों में किसान क्या करते थे? |
कठिन परिश्रम चैत की तान अलापते फागुन का गीत गाते खेतों की मेड़ों पर बैठे रहते |
चैत की तान अलापते |
सही उत्तर विकल्प (2) है → चैत की तान अलापते |