Target Exam

CUET

Subject

Hindi

Chapter

Comprehension - (Narrative / Factual)

Question:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर लिखिए।

दर्शन के अध्यापक मि. मेहता इस प्रशंसा को सहन न कर सकते थे। विरोध तो करना चाहते थे, पर सिद्धान्त की आड़ में। उन्होंने हाल ही में एक पुस्तक कई साल के परिश्रम से लिखी थी। उसकी जितनी धूम होनी चाहिए थी, उसका शतांश भी नहीं हुई थी। इससे बहुत दुखी थे। बोले-“भाई, मैं प्रश्नों का काइल नहीं। मैं चाहता हूँ, हमारा जीवन हमारे सिद्धान्तों के अनुकूल हो । आप कृषकों के शुभेच्छु हैं, उन्हें तरह-तरह की रिआयत देना चाहते हैं, जमींदारों के अधिकार छीन लेना चाहते हैं, बल्कि उन्हें आप समाज का शाप कहते हैं। फिर भी ज़मींदार हैं, वैसे ही ज़मींदार जैसे हज़ारों और जमींदार हैं। यदि आपकी धारणा है कि कृषकों के साथ रिआयत होनी चाहिए तो पहले आप ख़ुद शुरू करें। काश्तकारों को बग़ैर नज़राने लिये पट्टे लिख दें, बेगार बन्द कर दें, इज़ाफ़ा लगान को तिलाञ्जलि दे दें, चारागाह ज़मीन छोड़ दें। मुझे उन लोगों से ज़रा भी हमदर्दी नहीं है, जो बातें तो करते हैं कम्युनिस्टों की सी, मगर जीवन है रईसों का सा, उतना ही विलासमय, उतना ही स्वार्थ से भरा हुआ।"

रायसाहब को आघात पहुँचा। वकील साहब के माथे बर बल पड़ गये और सम्पादकजी के मुँह में जैसे कालिख लग गयी। वह ख़ुद समष्टिवाद के पुजारी थे, पर सीधे घर में आग न लगाना चाहते थे। तंखा ने रायसाहब की वकालत की "मैं समझता हूँ कि रायसाहब का अपने असामियों के साथ जितना अच्छा व्यवहार है, अगर सभी ज़मींदार वैसे ही हो जायें, तो यह प्रश्न ही न रहे।"

मेहता ने हथौड़े की दूसरी चोट जमायी "मानता हूँ, आपका अपने असामियों के साथ बहुत अच्छा बर्ताव है, मगर प्रश्न यह है कि उसमें स्वार्थ है या नहीं ? इसका एक कारण क्या यह नहीं हो सकता कि मद्धिम आँच में भोजन स्वादिष्ट पकता है? गुड़ से मारनेवाला ज़हर से मारने वाले की अपेक्षा कहीं अधिक सफल हो सकता है। मैं तो केवल इतना जानता हूँ कि हम या तो साम्यवादी हैं या नहीं हैं हैं, तो उसका व्यवहार करें, नहीं हैं, तो बकना छोड़ दें। मैं नक़ली ज़िन्दगी का विरोधी हूँ। अगर माँस खाना अच्छा समझते हो, तो खुलकर खाओ, बुरा समझते हो, तो मत खाओ, यह मेरी समझ में आता है, लेकिन अच्छा समझना और छिपकर खाना, यह मेरी समझ में नहीं आता। मैं तो इसे कायरता भी कहता हूँ और धूर्तता भी, जो वास्तव में एक है।"

मि. मेहता दुखी क्यों थे?

Options:

उनकी पुस्तक ज्यादा नहीं बिकी थी।

परिश्रम से लिखी उनकी पुस्तक की ज्यादा धूम नहीं हुई थी।

उनकी पुस्तक प्रकाशकों ने छापी नहीं थी।

बिना मेहनत से लिखी उनकी पुस्तक की ज्यादा धूम नहीं हुई थी।

Correct Answer:

परिश्रम से लिखी उनकी पुस्तक की ज्यादा धूम नहीं हुई थी।

Explanation:

सही उत्तर विकल्प (2) है → परिश्रम से लिखी उनकी पुस्तक की ज्यादा धूम नहीं हुई थी।