निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्न का उत्तर दीजिए- भारतीय साहित्य शास्त्र में नाटक भी काव्य के ही अंतर्गत माना गया है; अतः उसका लक्ष्य भी निर्दिष्ट शीलस्वभाव के पात्रों को भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में डालकर उनके वचनों और चेष्टाओं द्वारा दर्शकों में रस संचार करना ही रहा है। पात्रों के धीरोदात्त आदि बँधे हुए ढाँचे थे जिनमें ढले हुए सब पात्र सामने आते थे। इन ढाँचों के बाहर शीलवैचित्र्य दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता था। योरप में धीरे-धीरे शीलवैचित्र्य प्रदर्शन को प्रधानता प्राप्त होती गई, यहाँ तक कि किसी नाटक के संबंध में वस्तुविधान और चरित्रविधान की चर्चा का ही चलन हो गया। इधर 'यथातथ्यवाद' के प्रचार से वहाँ रहा सहा काव्यत्व भी झूठी भावुकता कहकर हटाया जाने लगा। यह देखकर प्रसन्नता होती है कि हमारे 'प्रसाद' और 'प्रेमी' ऐसे प्रतिभाशाली नाटककारों ने उक्त प्रवृत्ति का अनुसरण न करके रसविधान और शीलवैचित्र्य दोनों का सुंदर सामंजस्य रखा है। 'स्कंदगुप्त' नाटक में जिस प्रकार देवसेना और सर्वनाग ऐसे गूढ़ चरित्र के पात्र हैं, उसी प्रकार शुद्ध प्रेम, युद्धोत्साह, स्वदेशभक्ति आदि भावों की मार्मिक और उत्कृष्ट व्यंजना भी है। हमारे यहाँ के पुराने बँधे ढाँचों के भीतर शीलवैचित्र्य के लिये मार्ग खोलना तो ठीक है, पर यह आवश्यक नहीं कि उसके साथ ही रसात्मकता भी हम निकाल दें। |
'स्कंदगुप्त' नाटक के पात्र कौन है? |
प्रसाद प्रेमी देवसेना इनमें से कोई नहीं |
देवसेना |
सही उत्तर विकल्प (3) है → देवसेना |