उपरोक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए। अशोक के शिलालेखों और पतंजलि के ग्रन्थों से जान पड़ता है कि ईस्वी सन के कोई तीन सौ बरस पहले उत्तरी भारत में एक ऐसी भाषा प्रचलित थी जिसमें भिन्न-भिन्न कई बोलियाँ शामिल थीं। आर्यभाषा का उच्चारण ठीक-ठीक न बनने के कारण नई भाषा का जन्म हुआ था और इसका नाम 'प्राकृत' पड़ा। 'प्राकृत' शब्द 'प्रकृति' (मूल) शब्द से बना है और उसका अर्थ 'स्वाभाविक' या 'गँवारी' है। वेद में गाथा नाम से जो छंद पाए जाते हैं, उनकी भाषा पुरानी संस्कृत से कुछ भिन्न है, जिससे जान पड़ता है कि वेदों के समय में भी प्राकृत भाषा थी। सुविधा के लिये वैदिक काल की इस प्राकृत को हम पहली प्राकृत कहेंगे और ऊपर जिस प्राकृत का उल्लेख हुआ है उसे दूसरी प्राकृत। पहली प्राकृत ही ने कई शताब्दियों के पीछे दूसरी प्राकृत का रूप धारण किया। प्राकृत का जो सबसे पुराना व्याकरण मिलता है, वह वररुचि का बनाया है। वररुचि ईस्वी सन् के पूर्व पहली सदी में हुए थे। वैदिक काल के विद्वानों देववाणी को प्राकृत भाषा की भ्रष्टता से बचाने के लिये उसका संस्कार करके व्याकरण के नियमों से उसे नियंत्रित कर दिया। इस परिमार्जित भाषा का नाम 'संस्कृत' हुआ, जिसका अर्थ 'सुधरा हुआ' अथवा 'बनावटी' है। यह संस्कृत भी पहली आकृति की किसी शाखा से शुद्ध होकर उत्पन्न हुई है। संस्कृत को नियमित करने के लिये कितने ही व्याकरण बने जिसमें पाणिनि का व्याकरण सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रचलित है। विद्वान् लोग पाणिनि का समय ई. सन् के पूर्व सातवीं सदी में स्थिर करते हैं और संस्कृत को उनसे सौ वर्ष पीछे तक प्रचलित मानते हैं। |
गद्यांश के अनुसार पाणिनी का समय निम्नलिखित में से है - |
ईस्वी सन् के पूर्व आठवीं सदी ईस्वी सन् के पूर्व सातवीं सदी ईस्वी सन् की आठवीं सदी ईस्वी सन् की सातवीं सदी |
ईस्वी सन् के पूर्व सातवीं सदी |
सही उत्तर विकल्प (2) है → ईस्वी सन् के पूर्व सातवीं सदी |