प्रस्तुत पद्यांश को पढ़कर नीचे दिये हुए प्रश्न का उत्तर दीजिए:-
सच्चाई यह है कि केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती, सबसे अलग-अलग परिवेश से पृथक अपनों से कटा - बँटा शून्य में अकेला खड़ा होना, पहाड़ की महानता नहीं, मजबूरी है। ऊँचाई और गहराई में आकाश-पाताल की दूरी है। जो जितना ऊँचा उतना ही एकाकी होता है, हर भार को स्वयं ही ढोता है, चेहरे पर मुसकानें चिपका मन ही मन रोता है। ज़रूरी यह है कि ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो जिससे मनुष्य ठूंठ-सा खड़ा न रहे औरों से घुले-मिले किसी को साथ ले किसी के संग चले भीड़ में खो जाना यादों में डूब जाना अस्तित्व को अर्थ जीवन को सुगंध देता है। |