जर्नल या कि लेखक की नोटबुक में लेखक के चिंतन और रचना-कर्म की अधिक अंतरंग समस्याओं का लेखा रहता है। अज्ञेय की यूरोप यात्रा से संबद्ध जर्नल के कुछ अंश उनके यात्रा संस्मरण 'एक बूँद सहसा उछली' में तथा निबंध संग्रह 'आत्मनेपद' के परिशिष्ट में 'एकांत साक्षात्कार' शीर्षक से संकलित हुए हैं। बाद में जर्नल का एक पूरा व्यवस्थित रूप 'भवन्ती' (1972) में मिलता है। इस नये ढंग की गद्य रचना की प्रकृति व्याख्यायित करते हुए लेखक अपने 'निवेदन' में कहता है, "बल्कि यह कहें कि 'यात्रा' उन्हीं रचनाओं में है, 'भवन्ती' में उस यात्रा की 'लॉग बुक' है, जिसमें जब-तब दिक्काल की माप की टीप लिखी जाती रही है, जिसके आधार पर यात्रा के पथ-चिन्ह, अनुकूल और प्रतिकूल स्थितियाँ तथा धाराएँ, जोखम, भटकन, प्रत्युत्पन्न सूझ आदि का ब्यौरा मिलता रहे।" 'लेखक की नोटबुक' शीर्षक से रघुवीर सहाय ने अपनी कुछ टिप्पणियाँ आरंभिक संकलन 'सीढ़ियों पर धूप में' (1960) संकलित की हैं, जिन्हें लेखक ने बिना किसी तात्कालिक उत्तेजन के जैसे पूरे तौर पर अपने तई अंकित किया है। यह गद्य तब स्पष्ट ही अपने आप से संवाद है। यों इनमें से एक उद्धरण के साथ अकाल्पनिक गद्य-रूप विषयक प्रस्तुत विवेचन का समापन उचित होगा- सबसे बड़ा आत्महनन जो किया जा सकता है वह है 'लिखना'। अब हम कैसे बतायें कि लिखना कितना बड़ा दर्द है, कितना बड़ा त्याग है। बताना मुश्किल है क्योंकि वह कई एक ऐसी वस्तुओं का त्याग है जिन्हें साधारणतया कोई महत्व नहीं दिया जाता। पत्रकारिता के इस युग में कुछ लेखकों की टिप्पणियों के संकलन प्रकाशित हुए हैं। कहानीकार बटरोही का ऐसा ही संग्रह है 'टीप' (1985)। रघुवीर सहाय की टिप्पणियों का मरणोत्तर संग्रह है- 'अर्थात् ' (1994)। उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए: |
'एक बूँद सहसा उछली' किसकी रचना है? |
रघुवीर सहाय अज्ञेय मुक्तिबोध प्रभाकर माचवे |
अज्ञेय |
सही उत्तर विकल्प (2) है → अज्ञेय |