निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दें। आज़ हम उस असमंजस में पड़े हैं और यह निश्चय नहीं कर पाए हैं कि हम किस ओर चलेंगे और हमारा ध्येय क्या है? स्वभावतः ऐसी अवस्था में हमारे पैर लड़खड़ाते हैं। हमारे विचार में भारत के लिए और सारे संसार के लिए सुख और शान्ति का एक ही रास्ता है और वह है अहिंसा और आत्मवाद का। अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके, पर उसके सिद्धान्तों को तो हमें स्वीकार कर ही लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इन्तजार करना चाहिए। यदि हम सिद्धान्त ही न मानेंगे तो उसके प्रवर्तन की आशा केसे की जा सकती है? जहाँ तक मेंने महात्मा गाँधीजी के सिद्धान्त को समझा है, वह इसी आत्मवाद और अहिंसा के, जिसे वे सत्य भी कहा करते थे, मानने वाले और प्रवर्तक थे। उसे ही कुछ लोग आज गाँधीवाद का नाम भी दे रहे हैं। यद्यपि महात्मा गाँधी ने बार-बार यह कहा था कि "वे किसी नए सिद्धान्त या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं और उन्होंने अपने जीवन में प्राचीन सिद्धान्तों को अमल कर दिखाने का यत्न किया।" विचार कर देखा जाए तो जितने सिद्धान्त अन्य देशों, अन्य-अन्य काल और स्थितियों में भिन्न-भिन्न नामों और धर्मों से प्रचलित हुए हैं, सभी अन्तिम और मार्गिक अन्वेषण के बाद इसी तत्व अथवा सिद्धान्त में समाविष्ट पाए जाते हैं। केवल भौतिकवाद इनसे अलग है। हमें असमंजस की स्थिति से बाहर निकलकर निश्चय कर लेना है कि हम अहिंसावाद, आत्मवाद और गाँधीवाद के अनुयायी और समर्थक हैं न कि भौतिकवाद के। |
अहिंसा एवं सत्य के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है - |
असत्य मार्ग का सरल होना सत्य मार्ग की दुर्गमता हिंसा का दुर्दम्य होना मनुष्य की अपनी दुर्बलता |
मनुष्य की अपनी दुर्बलता |
गद्यांश में लेखक ने कहा है कि "अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके, पर उसके सिद्धान्तों को तो हमें स्वीकार कर ही लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इन्तजार करना चाहिए। यदि हम सिद्धान्त ही न मानेंगे तो उसके प्रवर्तन की आशा केसे की जा सकती है?" इससे स्पष्ट है कि लेखक के अनुसार, अहिंसा एवं सत्य के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा मनुष्य की अपनी दुर्बलता है। मनुष्य स्वभाव से ही लालची, अहंकारी और हिंसक होता है। उसे अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए हिंसा का सहारा लेने में संकोच नहीं होता है। वह सत्य के मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक आत्मबल और आत्मविश्वास नहीं रखता है।
अन्य विकल्पों का विश्लेषण इस प्रकार है:
इस प्रकार, स्पष्ट है कि लेखक के अनुसार, अहिंसा एवं सत्य के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा मनुष्य की अपनी दुर्बलता है।
|