निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके आधार पर प्रश्नों के उत्तर दीजिए। निश्चय ही पर्यावरण को विकृत्त और दूषित करने वाली समस्त आपदाएँ हमारी अपनी ही बनाई हुई हैं। हम स्वयं प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हैं। इसी असंतुलन से भूमि, वायु, जल और ध्वनि के प्रदूषण उत्पन्न हो रहे हैं। पर्यावरण प्रदूषण से फेफड़ों के रोग, हृदय और पेट की बीमारियाँ, देखने और सुनने की क्षमता में कमी, मानसिक तनाव आदि बीमारियाँ पैदा हो रही हैं। हम सभी जानते हैं कि धरती पर जीवन प्रकृत्ति संतुलन से ही संभव हो सकता है। प्राकृतिक वनस्पतियों से से ढक न जाए इसलिए घास खाने वाले प्रयाप्त संख्या में थें इन घास खाने वाले जानवारों की संख्या को सीमित रखने के लिए हिंसक जंतु भी थे। इन तीनों का अनुपात संतुलित और नियंत्रित था आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों और उद्योग धंघों के विकास फैलाव के साथ साथ जनसंख्या का भी भयावह विस्फोट हुआ है। बढ़ती आबादी की अपनी भोजन, वस्त्र और आवास की समस्याएँ हैं जिनकी पूर्ति के लिए धरती के संचित संसाधनों का अंधाघुंघ बेरहमी से दोहन किया जा रहा है। बड़े पैमाने पर वन काटे जा रहे हैं। खेती करने, घर बनाने, कल करखाने लगाने, सड़कें और रेल की पटरियाँ बिछाने के दिए भूमि चाहिए। सिंचाई और बिजली की आपूर्ति करने के लिए नदियों और झरनों के स्वाभाविक प्रवाहों को मोड़, बदल और रोककर बड़े बड़े बाँध बनाए जाते हैं, जिससे जंगल जलमग्न होते हैं । इमारती लकड़ी और कच्चे माल के लिए गत पचास वर्षों से वनों की कटाई इतनी तेजी से हुई है कि वनों और पशु-पंक्षियों का सफाया हो गया है। दूसरी ओर रासायनिक उर्वरकों कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव ने भूमि को उसर, दूषित और विषैला बना दिया है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्यकर और शुद्ध अनाज तथा फल-सब्जियाँ दुर्लभ हो गई हैं । |
उद्योग धन्धों के विकास से निम्नलिखित में से किसका भयावह विस्फोट हुआ है ? |
बम विस्फोट जनसंख्या विस्फोट विद्यु्त विस्फोट ज्यालामुखी विस्फोट |
जनसंख्या विस्फोट |
आधुनिक युग में वैज्ञानिक आविष्कारों और उद्योग धंघों के विकास फैलाव के साथ साथ जनसंख्या का भी भयावह विस्फोट हुआ है। |