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बार-बार आती है मुझको,
मधुर याद बचपन तेरी,
गया, ले गया, तू जीवन की,
सबसे मस्त खुशी मेरी।
चिंता रहित खेलना खाना,
वह फिरना निर्भय स्वच्छंद,
कैसे भूला जा सकता है,
बचपन का अतुलित आनंद।
रोना और मचल जाना भी,
क्या आनंद दिखलाते थे,
बड़े- बड़ मोती-से आँसू,
जयमाला पहनाते थे।
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मैं रोई, माँ काम छोड़कर,
आई, मुझको उठा लिया,
झाड़-पोंछकर चूम-चूमकर,
गीले गालों को सुखा दिया।
आ जा बचपन! एक बार फिर,
दे दे अपनी निर्मल शांति,
व्याकुल व्यथा मिटाने वाली,
वह अपनी प्राकृत विश्रांति।
वह भोली-सी मधुर सरलता,
वह प्यारा जीवन निष्पाप,
क्या फिर आकर मिटा सकेगा,
तू मेरे मन का संताप?
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