Practicing Success

Target Exam

CUET

Subject

Hindi

Chapter

Comprehension - (Narrative / Factual)

Question:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

मैं गंगा हूं, उत्तर भारत की प्रमुख नदी । भारतीय सभ्यता का अधिकांश मेरे ही तट पर या मेरी सहायक नदियों के तट पर विकसित हुआ । मेरी घाटी में भूमि सोना उगलती है। क्या अजब कि लोग मुझे माँ कहें।
13000 फुट ऊंचे गंगोत्री पहाड़ों से पिघली बर्फ की 2 गज पतली धारा गोमुख के नीचे बस 15 इंच गहरी है। मंदाकिनी और अलकनंदा की दोनों क्षीण धाराएं मिलकर जब कनखल के पास पहाड़ों से नीचे उतरती हैं, तब मेरा नाम ‘भागीरथी’ पड़ता है और मेरा कलेवर भी चौड़ा हो जाता है। दूध का -सा मेरा सफेद रंग चाहे मैदानों में उतरकर गंदा हो जाता है, पर बरसों रखने पर भी वह खराब नहीं होता। इसी से लोगों ने मेरे जल को अमृत कहा है और मेरी धारा की सुरसरि देवताओं की नदी।
मेरा विस्तार लगभग ढाई हजार किलोमीटर है और अनेकानेक नदियां मुझ में मिलती जाती हैं। मेरे किनारे महान राज्यों की स्थापना हुई, एक- से -एक बढ़कर वीर जातियां बसीं, विशाल नगरों के निर्माण हुए। जहां मैं पिता हिमालय से नीचे उतरती हूं, वहां हरिद्वार का पुण्य तीर्थ बन गया है। कुछ उसे हरद्वार, कुछ हरिद्वार, कहते हैं। द्वार निश्चय वह शिव और विष्णु दोनों के धाम का है। उस स्थल पर 12 वर्ष बाद जब कुंभ का मेला लगता है तब लाखों की संख्या में लोग देश के कोने-कोने से वहां पहुंचते हैं ।याद है, एक दिन उसी कुंभ में निर्भीक दयानंद ने सदियों की रूढ़ियों को ललकारते हुए धर्म के भयंकर ठेकेदारों के बीच अपनी ‘पाखंड-खंडिनी पताका’ फहरा दी थी।
मेरे पहाड़ों से नीचे उतरते ही उस दोआब का आरंभ होता है, जिसे मैं और यमुना दोनों मिलकर बनाती हैं । उस मध्य देश - आर्यावर्त की महिमा बराबर गाई गई है। मेरी महिमा वेदों ने गाई, पुराणों ने मेरे यश का विस्तार किया। बड़ी शुभ घड़ी थी जब राजा हस्तिन ने हस्तिनापुर का नगर मेरे तट पर बसाया। तब वही नगर चंद्रवंशी भरत-कुल की राजधानी बना। भरतों की ही संतान कौरव -पांडव थे। उसी कुल में शकुंतला ब्याही थी। महाभारत का महा समर ठनने के पहले मेरे किनारे बसे हस्तिनापुर में वासुदेव कृष्ण ने दुर्योधन को कितना समझाया था, पर दुर्योधन ने एक न सुनी और महाभारत का युद्ध होकर ही रहा। बाद में , अर्जुन के परपोते जनमेजय के बाद, जब मैंने देखा कि पांडवों का वह राजकुल शक्ति से हीन हो गया है, तब उसको अपयश से बचाने के लिए मैंने अपनी धारा में ले लिया। हस्तिनापुर डूब गया।

'पाखंड - खंडिनी पताका' फहराने के पीछे क्या भावना थी ?

Options:

प्राचीन रूढ़ियों को ललकारना

प्राचीन रूढ़ियों की स्थापना

नवीन रूढ़ियों को ललकारना

नवीन रूढ़ियों की स्थापना

Correct Answer:

प्राचीन रूढ़ियों को ललकारना

Explanation:

सही उत्तर (1) प्राचीन रूढ़ियों को ललकारना है।

गद्यांश में बताया गया है कि स्वामी दयानंद ने कुंभ मेले में अपनी "पाखंड-खंडिनी पताका" फहराकर सदियों से चली आ रही रूढ़ियों को ललकारा था। उन्होंने धर्म के भयंकर ठेकेदारों के बीच जाकर कहा था कि वे केवल धर्म के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं। उन्होंने धर्म को सरल और व्यावहारिक बनाने का आह्वान किया था।

इस प्रकार, स्वामी दयानंद की "पाखंड-खंडिनी पताका" फहराने की भावना प्राचीन रूढ़ियों को ललकारने की थी।