बीच-बीच में आते स्टेशनों पर यदा-कदा ही सवारियाँ चढ़ती उतरती थीं। हमने उदय प्रकाश को दी गई सुरती होंठों के नीचे दाब रखी थी। जाहिर था पीक फेंकने के लिए हमें बाथरूम जाना ही था। हम नीचे उतर कर गए। कमाल का बाथरूम था। मुझे याद आया, हमारे यहाँ तो इतनी भीड़ हो जाती है कि कभी-कभी लोग गन्दगी के बावजूद बाथरूम में खड़े-खड़े पूरी यात्रा कर लेते हैं। वहाँ न्यूनतम प्रसाधन के सारे इन्तजाम थे। डिब्बे में जो भी थोड़े से यात्री थे, उनकी हममें कोई खास दिलचस्पी नहीं थी जैसा अमूमन उनके यहाँ होता है। बाहर जर्मनी की धरती। कोई फसल तो न दिखी, मगर सुदूर कारखाने और उनसे उठता धुआँ जो लगातार वायुमंडल में फेलकर प्रदूषण फैला रहा था। मुझे यह देखकर आश्चर्य होता था कि कारखानों के बावजूद वहाँ न गन्दगी दिख रही थी, न कोई दुर्गन्ध और न ही भीड़-भाड़ । यहाँ अजब अनुशासित नागरिक हैं, आखिर यूँ ही यह यूरोप का सबसे विकसित देश तो नहीं बना है न। आज यात्रा का तीसरा दिन था और मोसम साफ। हम तीनों धुआँधार बातें कर रहे थे, बहस कर रहे थे और एक-दूसरे को भद्रता से सुन भी रहे थे। अमूमन यूरोपीय कम बातें करते हैं। एक ओर जर्मनी के वायुमंडल में हिन्दी ध्वनियों का यह लगातार प्रसार, तो दूसरी ओर बेहद खूबसूरत दृश्यवालियाँ। मन अद्भुत रोमांच से भरा हुआ था। कभी-कभी यकीन ही नहीं होता था कि हम सचमुच यूरोप रेल के सफर में थे। लेकिन यह वाकई सच था । उपरोक्त गद्यांश से संबंधित निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर बताएं। |
किस देश को लेखक यूरोप का सबसे विकसित देश बता रहा है:- |
फ्रांस बेल्जियम ऑस्ट्रिया जर्मनी |
जर्मनी |
सही उत्तर विकल्प (4) है → जर्मनी |