Practicing Success
प्रायः सुनने में आता है कि कविता का उद्देश्य मनोरंजन है। पर जैसा कि हम पहले कह आए हैं, कविता का अंतिम लक्ष्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके उनके साथ मनुष्य- हृदय का सामंजस्य-स्थापन है। इतने गंभीर उद्देश्य के स्थान पर केवल मनोरंजन का हल्का उद्देश्य सामने रखकर जो कविता का पठन-पाठन या विचार करते हैं, वे रास्ते ही में रह जाने वाले पथिक के समान हैं। कविता पढ़ते समय मनोर॑जन अवश्य होता है, पर इसके उपरांत कुछ 'और' भी होता है और वही 'और' सब कुछ है। मनोर॑जन वह शक्ति है जिससे कविता अपना प्रभाव जमाने के लिए मनुष्य की चित्तवृत्ति को स्थिर किए रहती है, इधर-उधर जाने नहीं देती। अच्छी से अच्छी बात को भी कभी-कभी जो केवल कान से सुन भर लेते हैं, उनकी ओर उनका मनोयोग नहीं होता। केवल यही कहकर कि 'परोपकार करो', 'दुसरों पर दया करो', 'चोरी करना महापाप है' हमें यह आशा कदापि न करनी चाहिए कि कोई अपकारी उपकारी, कोई क्रूर दयावान या कोई चोर साधु हो जाएगा। क्योंकि ऐसे वाक्यों के अर्थ की पहुँच हृदय तक होती ही नहीं. वह ऊपर ही ऊपर रह जाता है। ऐसे वाक्यों द्वारा सुचित व्यापारों का मानव-जीवन के बीच कोई मार्मिक चित्र सामने न पाकर हृदय उनकी अनुभूति की और प्रवृत्त ही नहीं होता। पर कविता अपनी मनोरंजन-शक्ति द्वारा पढ़ने या सुनने वाले का चित्त रमाए रहती है, जीवन-पट पर उक्त कर्मों की सुंदरता या विरूपत्ता अंकित करके हृदय के मर्म स्थलों का स्पर्श करती है। मनुष्य के कुछ कर्मों में जिस प्रकार दिव्य सौंदर्य और माधुर्य होता है, उसी प्रकार कुछ कर्मों में भीषण कुरूपत्ता और भद्दापन होता है। इसी सोंदर्य या कुरूपतता का प्रभाव मनुष्य के हृदय पर पड़ता है और इस सौंदर्य या कुरूपता का सम्यक प्रत्यक्षीकरण कविता ही कर सकती है। |
गद्यांश के अनुसार कविता का मुख्य उद्देश्य है |
मनोरंजन परोपकार करना जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण दूसरों पर दया करना |
जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण |
गद्यांश के अनुसार, कविता का मुख्य उद्देश्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करना है। गद्यांश में कहा गया है कि कविता का अंतिम लक्ष्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके उनके साथ मनुष्य-हृदय का सामंजस्य-स्थापन करना है। कविता मनोरंजन भी करती है, लेकिन यह उसका मुख्य उद्देश्य नहीं है। मनोरंजन केवल कविता की एक शक्ति है जिससे वह अपना प्रभाव जमाने के लिए मनुष्य की चित्तवृत्ति को स्थिर किए रहती है। गद्यांश में यह भी कहा गया है कि केवल यही कहकर कि 'परोपकार करो', 'दुसरों पर दया करो', 'चोरी करना महापाप है' हमें यह आशा कदापि न करनी चाहिए कि कोई अपकारी उपकारी, कोई क्रूर दयावान या कोई चोर साधु हो जाएगा। क्योंकि ऐसे वाक्यों के अर्थ की पहुँच हृदय तक होती ही नहीं। कविता इन कर्मों का मार्मिक चित्र सामने लाकर हृदय के मर्म स्थलों का स्पर्श करती है और इसी सोंदर्य या कुरूपता का प्रभाव मनुष्य के हृदय पर पड़ता है। इस प्रकार, गद्यांश के अनुसार, कविता का मुख्य उद्देश्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके उनका मनुष्य-हृदय के साथ सामंजस्य-स्थापन करना है। "प्रायः सुनने में आता है कि कविता का उद्देश्य मनोरंजन है। पर जैसा कि हम पहले कह आए हैं, कविता का अंतिम लक्ष्य जगत के मार्मिक पक्षों का प्रत्यक्षीकरण करके उनके साथ मनुष्य- हृदय का सामंजस्य-स्थापन है|" |