निम्रलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये। संस्कृति ऐसी चीज़ नहीं जिसकी रचना दस-बीस या सी-पचास वर्षों में की जा सकती है। हम जो कुछ भी करते हें उसमें हमारी संस्कृति की झलक होती हे। यहाँ तक कि हमारे उठनेबेठने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने और रोने-हँसने मे भी हमारी संस्कृति की पहचान होती है, यद्यपि हमारा कोई भी एक काम हमारी संखकति का पर्याय नहीं बन सकता। असल में, संस्कृति जिंदगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता हे, जिसमें हम जन्म लेते हैं। इसलिए जिस समाज में हम पैदा हुए हैं अथवा जिस समाज से मिलकर हम जी रहे हैं, उसकी संस्कृति, हमारी संस्कृति हैं यद्यापि अपने जीवन में हम जो संस्कार जमा कर रहे हैं वह भी हमारी संस्कृति का अंग बन जाते हैं और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति की विरासत भी अपनी संतानों के लिए छोड़ जाते हैं। इसलिए संस्कृति वह चीज़ मानी जाती है जो हमारे सारे जीवन को व्यापे हुए है तथा जिसकी रचना ओर विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है। यहीं नहीं, बल्कि संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मांतर तक करती है। अपने यहाँ एक साध्रारण कहावत हे कि जिसका जैसा संख्कार हे, उसका वैसा ही पुनर्जन्म भी होता है। जब हम किसी बालक या बालिका को बहुत तेज पाते हैं तब अचानक कह देते हैं कि वह पूर्वजन्म का संस्कार है। संस्कार या संस्कृति, असल में, शरीर का नही, आत्मा का गुण हैं; और जबकि सभयता की सामग्रियों से हमारा संबंध शरीर के साध ही छूट जाता है, तब भी हमारी संस्कृति का प्रभाव हमारी आक्मा के साथ जन्म जन्मांतर तक चलता रहता है। |
सभ्यता और संस्कृति में मूल अंतर यह है कि सभ्यता - |
नित्य है, संस्कृति अनित्य असीमित है, संस्कृति सीमित का संबंध इहलोक से है, और संस्कृति परलोक से का प्रभाव परिमित है, संस्कृति का अपरिमित |
का प्रभाव परिमित है, संस्कृति का अपरिमित |
सही उत्तर विकल्प (4) है → का प्रभाव परिमित है, संस्कृति का अपरिमित |