निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर प्रश्न का उत्तर दीजिए:- कितने ही कटुतम काँटे तुम मेरे पथ पर आज बिछाओ, और अरे चाहे निष्ठुर कर का भी धुंधला दीप बुझाओ। किंतु नहीं मेरे पग ने पथ पर बढ़कर फिरना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कहीं छुपा दो मंज़िल मेरी चारों और तिमिर-घन छाकर, चाहे उसे राख कर डालो नभ से अंगारे बरसाकर, पर मानव ने तो पग के नीचे मंज़िल रखना सीखा है। मैंने बस चलना सीखा है। कब तक ठहर सकेंगे मेरे सम्मुख यह तूफान भयंकर कब तक मुझसे लड़ पाएगा इंद्रराज का वज्र प्रखरतर मानव की ही अस्थिमात्र से वज्रों ने बनना सीखा है । मैंने बस चलना सीखा है। |
मानव के सामने क्या नहीं टिक पाता? |
भयंकर से भयंकर तूफान नहीं टिक पाता | दुबला पतला आदमी नहीं टिक पाता| अंधेरे में जाता व्यक्ति नहीं टिक पाता| ऊंचाइयों को छूता बादल नहीं टिक पाता| |
भयंकर से भयंकर तूफान नहीं टिक पाता | |
मानव के सामने भयंकर से भयंकर तूफान भी नहीं ठहर पाते हैं । मनुष्य इन तूफानों का सामना साहस पूर्वक करता है और उन्हें पराजित करके ही दम लेता है| |