Practicing Success

Target Exam

CUET

Subject

Hindi

Chapter

Comprehension - (Poetry / Literary)

Question:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दें।

आज़ हम उस असमंजस में पड़े हैं और यह निश्चय नहीं कर पाए हैं कि हम किस ओर चलेंगे और हमारा ध्येय क्या है? स्वभावतः ऐसी अवस्था में हमारे पैर लड़खड़ाते हैं। हमारे विचार में भारत के लिए और सारे संसार के लिए सुख और शान्ति का एक ही रास्ता है और वह है अहिंसा और आत्मवाद का। अपनी दुर्बलता के कारण हम उसे ग्रहण न कर सके, पर उसके सिद्धान्तों को तो हमें स्वीकार कर ही लेना चाहिए और उसके प्रवर्तन का इन्तजार करना चाहिए। यदि हम सिद्धान्त ही न मानेंगे तो उसके प्रवर्तन की आशा केसे की जा सकती है? जहाँ तक मेंने महात्मा गाँधीजी के सिद्धान्त को समझा है, वह इसी आत्मवाद और अहिंसा के, जिसे वे सत्य भी कहा करते थे, मानने वाले और प्रवर्तक थे। उसे ही कुछ लोग आज गाँधीवाद का नाम भी दे रहे हैं। यद्यपि महात्मा गाँधी ने बार-बार यह कहा था कि "वे किसी नए सिद्धान्त या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं और उन्होंने अपने जीवन में प्राचीन सिद्धान्तों को अमल कर दिखाने का यत्न किया।" विचार कर देखा जाए तो जितने सिद्धान्त अन्य देशों, अन्य-अन्य काल और स्थितियों में भिन्न-भिन्न नामों और धर्मों से प्रचलित हुए हैं, सभी अन्तिम और मार्गिक अन्वेषण के बाद इसी तत्व अथवा सिद्धान्त में समाविष्ट पाए जाते हैं। केवल भौतिकवाद इनसे अलग है। हमें असमंजस की स्थिति से बाहर निकलकर निश्चय कर लेना है कि हम अहिंसावाद, आत्मवाद और गाँधीवाद के अनुयायी और समर्थक हैं न कि भौतिकवाद के।

गाँधी जी का मानना था कि वे -

Options:

प्राचीन सिद्धांतों की व्याख्या कर रहे हैं।

भौतिकवाद के संस्थापक हैं।

प्राचीन सिद्धांतों कों आचरण में ढाल रहे हैं।

सत्य और अहिंसा के प्रवर्तक हैं।

Correct Answer:

प्राचीन सिद्धांतों कों आचरण में ढाल रहे हैं।

Explanation:

गद्यांश में लेखक ने कहा है कि "गाँधी जी ने बार-बार यह कहा था कि "वे किसी नए सिद्धान्त या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं और उन्होंने अपने जीवन में प्राचीन सिद्धान्तों को अमल कर दिखाने का यत्न किया।"

इससे स्पष्ट है कि गाँधी जी का मानना था कि वे कोई नए सिद्धांत या वाद के प्रवर्तक नहीं हैं। वे तो केवल प्राचीन सिद्धांतों को आचरण में ढाल रहे हैं। उन्होंने अपने जीवन में अहिंसा और आत्मवाद के सिद्धांतों को अमल करके दिखाया है।

अन्य विकल्पों का विश्लेषण इस प्रकार है:

  • प्राचीन सिद्धांतों की व्याख्या कर रहे हैं: यह भी एक संभावना है, लेकिन यह गाँधी जी के मूल विचारों से मेल नहीं खाता है। गाँधी जी का मानना था कि सिद्धांतों को केवल व्याख्या करने से नहीं, बल्कि उन्हें आचरण में ढालने से ही उनका वास्तविक महत्व पता चलता है।
  • भौतिकवाद के संस्थापक हैं: यह गलत है। गाँधी जी एक आध्यात्मिक व्यक्ति थे और उनका मानना था कि भौतिकवाद एक अधूरा सिद्धांत है।
  • सत्य और अहिंसा के प्रवर्तक हैं: यह भी गलत है। सत्य और अहिंसा के सिद्धांत प्राचीन काल से ही मौजूद थे। गाँधी जी ने केवल इन सिद्धांतों को पुनर्जीवित किया और उन्हें आधुनिक युग में प्रासंगिक बनाया।

इस प्रकार, स्पष्ट है कि गाँधी जी का मानना था कि वे प्राचीन सिद्धांतों को आचरण में ढाल रहे हैं।