Practicing Success

Target Exam

CUET

Subject

Hindi

Chapter

Comprehension - (Poetry / Literary)

Question:

निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए -
"मैं जिस समाज की कल्पना करता हूं , उसमें गृहस्थ संन्यासी और
संन्यासी गृहस्थ होंगे अर्थात संन्यास और गृहस्थ के बीच वह दूरी नहीं रहेगी
जो परंपरा से चलती आ रही है ।संन्यासी उत्तर कोटि का मनुष्य होता है ।
क्योंकि उसमें संचय की वृति नहीं होती , लोभ और स्वार्थ नहीं होता। यही गुण
गृहस्थ में भी होना चाहिए। संन्यासी भी वह वही श्रेष्ठ है जो समाज के लिए कुछ
करें। ज्ञान और कर्म को भिन्न करोगे तो विषमता उत्पन्न होगी ही। 'मुख में
कविता और करघे पर हाथ, यह आदर्श मुझे बहुत पसंद था इसी की शिक्षा में
दूसरों को भी देता हूँ । श्रेष्ठ समाज वही है जिसके सदस्य ज्ञान और कर्म में से
एक को श्रेष्ठ और दूसरे को अधम नहीं मानते। श्रेष्ठ समाज वह है जिसके
सदस्य जी खोलकर श्रम करते हैं जरूरत है कि धन पर अधिकार जमाने
की उनकी इच्छा नहीं होती। वे मानते हैं :
"उधर समाता उन्न लै, तनही समता चीर।
अधिकहि संग्रह ना करें, ताको नाम फकीर।"

'गृहस्थ और संन्यासी संन्यासी और गृहस्थ' से लेखक का क्या आशय है?

Options:

गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना।

गृहस्थ और संन्यासी अलग अलग है।

गृहस्थ संन्यासी है संन्यासी गृहस्थ है|

हमे गृहस्थ का पालन करना चाहिए संन्यासी का नही|

Correct Answer:

गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना।

Explanation:

सही उत्तर गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना है।

गद्यांश में लेखक यह बताते हैं कि वह एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जिसमें गृहस्थ और संन्यासी के बीच कोई भेदभाव न हो। उनके अनुसार, संन्यासी और गृहस्थ दोनों ही समाज के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। संन्यासी के पास ज्ञान होता है, जबकि गृहस्थ के पास कर्म होता है। इन दोनों को एक साथ जोड़ने पर ही एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सकता है।

लेखक कहते हैं कि गृहस्थ संन्यासी और संन्यासी गृहस्थ का अर्थ यह है कि गृहस्थ को संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना चाहिए। उसे लोभ, मोह, और स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। उसे अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों को निभाते हुए भी समाज के लिए कुछ करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इसी प्रकार, संन्यासी को भी समाज के लिए कुछ करना चाहिए। उसे अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए।

इस प्रकार, गद्यांश के आधार पर यह स्पष्ट है कि लेखक का आशय यह है कि गृहस्थ और संन्यासी दोनों को एक साथ मिलकर एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना चाहिए।