निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्न का उत्तर दीजिए - |
'गृहस्थ और संन्यासी संन्यासी और गृहस्थ' से लेखक का क्या आशय है? |
गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना। गृहस्थ और संन्यासी अलग अलग है। गृहस्थ संन्यासी है संन्यासी गृहस्थ है| हमे गृहस्थ का पालन करना चाहिए संन्यासी का नही| |
गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना। |
सही उत्तर गृहस्थ में रहकर संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना, दोनो में संतुलन बनाना है। गद्यांश में लेखक यह बताते हैं कि वह एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जिसमें गृहस्थ और संन्यासी के बीच कोई भेदभाव न हो। उनके अनुसार, संन्यासी और गृहस्थ दोनों ही समाज के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। संन्यासी के पास ज्ञान होता है, जबकि गृहस्थ के पास कर्म होता है। इन दोनों को एक साथ जोड़ने पर ही एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सकता है। लेखक कहते हैं कि गृहस्थ संन्यासी और संन्यासी गृहस्थ का अर्थ यह है कि गृहस्थ को संन्यासी जैसा सादा जीवन जीना चाहिए। उसे लोभ, मोह, और स्वार्थ से दूर रहना चाहिए। उसे अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों को निभाते हुए भी समाज के लिए कुछ करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। इसी प्रकार, संन्यासी को भी समाज के लिए कुछ करना चाहिए। उसे अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए। इस प्रकार, गद्यांश के आधार पर यह स्पष्ट है कि लेखक का आशय यह है कि गृहस्थ और संन्यासी दोनों को एक साथ मिलकर एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना चाहिए। |